प्रादुर्भाव
यह पांचवें दशक का पूवाद्र्ध था, जब भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं0 जवाहरलाल नेहरू ने तत्कालीन यू.एस.एस. आर के प्रसिद्ध ‘एक्यिर प्लेस’ का दौरा किया, जहां वे एक ऐसे स्थान पर पहुंच गए जहां सैंकड़ों बच्चे जाति, धर्म, रंग-भेद से परे मौज-मस्ती और सृजन की दुनियां में तल्लीन थे। बस यहीं से उनके मस्तिष्क में मात्र बच्चों के लिए एक ऐसी संस्थान का विचार कौंध गया। 1956 में पं0 नेहरू ने तुर्कमान गेट, दिल्ली में एक टीनशेड में बाल भवन की स्थापना की, जो खेल-खेल में तथा बाल उन्मुख वातावरण में विभिन्न गतिविधियों के जरिए सृजन को बढ़ावा देने के एक राष्ट्रव्यापी मिशन की शुरूआत थी। वर्ष 1956 में इसकी स्थापना से लेकर अब बाल भवन देशभर आन्दोलन दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति कर चुका है, जिसमें 104 जिलों में मान्यताप्राप्त बाल भवन और बाल केन्द्र कार्यरत है। राष्ट्रीय बाल भवन मानव संसाधन विकास (एच आर डी) मंत्रालय के अधीन एवं वित्तपोषित एक स्वायत्त संस्था है।
श्रीमती इन्दिरा गांधी - 10.03.1955 से मार्च, 1966 तथा 25.09.1974 से 1976 तक दो बार बाल भवन की अध्यक्ष रही हैं। बाल भवन की संस्थापक अध्यक्ष होने के नाते उन्होंने देशभर के लाखों बच्चों को आत्म-अभिव्यक्ति का अवसर प्रदान करने के अभियान को आगे बढ़ाया। वे बड़े पैमाने पर बच्चों की गतिविधियों के साथ करीब से जुड़ी थीं, उन्होंने अपने व्यस्त जीवन में समय निकालकर बच्चों को दिया, उनसे वार्ताएं की, उन्हें प्रोत्साहित किया तथा बच्चों के साथ विचारों का आदान-प्रदान किया। श्रीमती गांधी के उत्तराधिकारियों में डा0 कर्ण सिंह, श्रीमती पुपुल जयकर, श्रीमती मेखला झा, बेगम बिलकिस लतीफ, सुश्री गीता धर्मराजन सरीखें कुछ ऐसे नाम हैं, जिन्होंने राष्ट्रीय बाल भवन को अनौपचारिक गतिविधियों के माध्यम से अध्ययन के लिए बच्चों के स्वर्ग के रूप में विकसित करने में गहरी दिलचस्पी ली। श्री अनिल कुमार सिंघल वर्तमान अध्यक्ष के रूप में इस आन्दोलन को आगे बढ़ाने में जुटे हैं।